कभी कभी लगता हैं, कि अपनी paristhi
उम्मीद
एक छल खुद के नाम
ये वाक्या उन दिनों का हैं जब एक लड़की अपने माँ बाप से दूर एक नया संसार बसाने जाती हैं, हाँ शांति भी वही नये जीवन में प्रवेश कर रही थी । तीन संतानों में शांति सबसे छोटी थी उससे बड़ी एक बहन थी और एक बड़ा भाई दोनों की गृहस्थी जमी जमाई थी। अब बारी शांति की थी परंतु शांति के लिए अभी थोड़ी परेशानी थी क्यूंकि शांति स्वभाव से थोड़ी जिद्दी और बात बात में तुनकने की आदत थी जो कि उसके लिए कभी कभी खतरनक साबित हो जाती थी। फिर भी इंसान कैसा भी हो उसकी जोड़ी उपर वाला जिससे बनाया रहता हैं उससे उसका मिलन करवा ही देता हैं। शांति नये सपने नये उत्साह के साथ नये जीवन में प्रवेश करती हैं, पति भी ठीक ठाक था सीधा सादा ज्यादा हस्तक्षेप करने वाला भी नहीं था, शांति की एक जेठ जेठानी थे, और सास थी ससुर स्वर्ग सिधार चुके थे। धीरे धीरे परिवार में सब ठीक होने लगा सभी अपने काम में व्यस्त रहने लगे थे, शांति को ससुराल के रीति रिवाजों को सीखने मे समय लगा, क्युकिं ससुराल में उसे उतना कुछ बनाने नहीं आता था परंतु सास और जेठानी की मदद से सब सीख गयी, शुरू मे शांति अपने व्यहार को नियंत्रित कर रखा था, समय के साथ जिद्दीपन और गुस्सा दिखने लगा, किसी के साथ सामन्जस्य ना करने की आदत भी परिवार वालों को समझ में आने लगी, घर में कोई मजाक भी कर देता तो उसे सहन नहीं कर पाती। समय बितते गया पति भी लापरवाह हो गया था ये बात शांति और गुस्सा दिला देती थी। तीन साल हो चुके थे शादी को पर शांति को औलाद का सुख नहीं मिला था, घर का माहौल भी बिगड़ने लगा, शांति और जेठानी के बीच अनबन होने लगी, उसके bad शांति अपने पति को लेकर अलग रहने लगी। शांति की मेहनत रंग लाई रहने खाने का इंतजाम भी होने लगा , पति भी एक दुकान में नौकरी करने लगा। शांति के पास समय बहुत कम रहता वह अपने काम मे मस्त रहने लगी, इस बीच उसके पति को थोड़ी शराब की लत लग गयी जो कि शांति के लिए एक बहुत बड़ा बर्बादी का कारण बन गया वो घर पर पैसा नहीं देता था ऊपर से शांति के कमाए हुए पैसे भी उड़ा आता था, ऐसे ही समय अपनी गति से बढ़ने लगा शांति को एक बच्चा भी हो गया, बड़ा सुंदर सा मनमोहनेे वाला, जो देखे हर कोई गोदी उठाने को मजबूर हो जाता। शांति अपना बच्चा पाकर बहुत ख़ुश थी, पर शांति की परिस्थिति खराब थी इसलिए बच्चे को वो सब सुख नहीं दे पायी जो मिलना था, इसका भान शांति को अच्छी तरह था, समय का चक्र कहिये या व्यवहार जैसा नाम उसके अनुरूप शांति थी भी नहीं, अपने आपको आगे रखने , अपनी महत्ता बताने की होड़ में उसने झूठ बोलना सिखा दिया था ये बातें धीरे धीरे सबको पता चलने लगी। शांति का बेटा अनिकेत बड़ा हो गया था उसकी नौकरी भी एक अच्छी कंपनी में लग गयी , पैसे की दिक्कत भी खत्म हो गई सभी सुखी से जीवन बीता रहे थे, इधर शांति का अपने पति के साथ दिन ब दिन व्यहार खराब होने लगा, क्योंकि शांति को लगने लगा कि जो भी हैं उसका बेटा ही हैं , मेरा पति तो अपनी जिम्मेदारी भी पूरा नहीं कर पाया अब मैं इसे क्यूँ महत्त्व दूँ यही सोचकर आये दिन घर में खीट पीट होने लगी, अनिकेत भी अपनी मां को बहुत मानता था उसकी हर इच्छा पूरी करता, परंतु इंसानों की आदत कभी संतुष्ट हो जाए ऐसे ही थोड़ी होती हैं कितना भी कुछ अनिकेत करता लेकिन मां हमेशा असन्तुष्ट ही दिखती, पर ऐसा नहीं कि वह अनिकेत को नहीं चाहती, वह उसे खूब प्यार करती, जब वह घर पर नहीं होता मानो रसोई का खाना भी मायूस सा हो जाता, किचन से जैसे खाने की महक ही चली जाती थी, समय ने करवट ली अनिकेत को एक लड़की पसन्द आ गई नाम वर्षा, वो भी एक कंपनी में नौकरी करती थी और अच्छे पद पर थी, अनिकेत अपनी मां से मन की बात कह देता हैं और इच्छा जाहिर करता हैं कि वह वर्षा से ही शादी करेगा, शांति ने सुनते ही साफ मना कर दिया क्युंकि शांति ठहरी पुराने दकियानुसी विचारधारा के साथ साथ दूसरे जाति से शादी के सख्त खिलाफ। अनिकेत ने भी चुप्पी साध ली, जिद ठान ली थी अनिकेत ने शादी करूँगा तो वर्षा से वरना नहीं करूँगा, बेटे का व्यवहार रूखा होते देख शांति को अपना बेटा हाथ से जाते नजर आया, ये सोचकर शांति शादी के लिए तैयार हो जाती हैं। वर्षा सादगी से रहने वाली लड़की थी दिखावा और ढोंग दूर दूर तक नहीं जो भी बातें होती स्पष्ट कह देती, शायद यही व्यवहार उसकी सास को पसंद नहीं आया या फिर अनिकेत का वर्षा की ओर झुकाव। वह एक अच्छी मां तो थी परंतु एक अच्छी चाहकर नहीं बन पा रही थी क्यूकि वर्षा के आने के बाद उसको अपने बेटे के छीन जाने का डर सताने लगा और धीरे धीरे अपना सिंहासन डोलता नज़र आया, अनिकेत कभी कभी कोई काम टाल जाता तो सारा दोष वर्षा के उपर मढ़ दिया जाता, पड़ोसियों तक को अब शांति के व्यहार की भनक लगने लगी, कि जब से वर्षा आई हैं उसका बेटा ध्यान नहीं देता, पैसा भी अपने पास रखने लगा हैं, पर इन सब बातों से अनजान अनिकेत, को कभी लगा ही नहीं कि उसने कभी कोई कमी छोड़ी हैं दोनों पति पत्नी नौकरी में चले जाते थे और शांति अपने घर के काम में मस्त रहती थी, परंतु अंदर ही अंदर वह कुडते रहती बस यही सोचती कि सभी चीजें मेरे ही अख्तियार में रहे, रहती भी थी परन्तु शांति को चैन कहां था अपने व्यवहार के कारण घर का क्या आस पड़ोस का भी माहौल खराब कर रखा था, उनसे कोई बात भी नहीं करना चाहता था । एक दिन वर्षा के ट्रांसफर की खबर आयी और वह दूसरे जगह चली गयी अनिकेत और वर्षा अब सप्ताह में एक दिन दो दिन ही समय गुजारते, शांति के उपर काम का बोझ थोड़ा bdबड़ गया, लेकिन मन ही मन खुश भी थी कि बेटा मेरे नियंत्रण में रहेगा, बहू से दूर रहेगा, क्युंकि शांति दोनों को साथ देखती तो ईर्ष्या से भर जाती, शांति को पति का साथ नहीं मिल पाने के कारण वह बेटे बहू की खुशी बर्दाश्त नहीं कर पाती ये सब बातें कितने तक छुपा पाती सब्र का बांध कब तक मन रूपी वेग को बहने से रोक पाता, अनिकेत का वर्षा के पास हर सप्ताह जाना उसे रास नहीं आ रहा था ये सब शांति के व्यवहार में दिखने लगा था वर्षा और अनिकेत भी इससे भलीभाँति परिचित थे पर इनकी आदत हैं ये सोचकर टाल जाते हैं पर दुख तो होता था कि अपने ही बहू बेटे को खुश क्यों नहीं देख पाती , दिन बीतने लगा एक दिन शांति बहुत भयानक बीमार हो जाती हैं इतना कि बिस्तर से भी उठ नहीँ पा रही थी, वर्षा भी नौकरी वाली घर और बाहर कैसे सम्भाले दोनों मे सामंजस्य बिठाना मुश्किल था, फिर भी वर्षा ने जितना हो सका किया तब तो कुछ दिन के लिए शांति का व्यवहार बदल गया था हर बात में बेटा बेटा करने लगी थी वर्षा को सब समझ आता था पर उसके लिए एक बीमार इंसान ठीक हो जाये ये बात ज्यादा मायने रखती थी इसलिए शांति के ठीक होने तक भरपूर साथ दिया उसी दौरान उसकी माहवारी का भी समय आ गया वर्षा को चिन्ता होने लगी अब कैसे करे, किचन में जायेगी तो सास के बनाये नियम को तोड़ देगी ना जाये तो अपना फ़र्ज़ कैसे निभाय खाना कौन बनायगा सारे काम किचन से ही होकर तो गुजरता हैं ,कैसे करे सारे काम क्योंकि ये ढकोसले नियम उसके सास के बनाये हुए थे वर्षा को इन नियमो से कोई फर्क नहीं पड़ता था उसके इंसान पहले महत्व रखते थे ना की ढकोसले। वर्षा बेझिझक किचन में घुसकर काम करने लगी और 15 दिन के भीतर सास चलने फिरने लायक हो गई ये सोचकर अनिकेत वर्षा के साथ चला क्या गया उसकी माँ ने घर सिर पर उठा लिया बार बार अनिकेत को ताना देती, तुम लोग बीमार हालत में छोङकर चले गए वर्षा को जब ये बात पता चली उसे भी बहुत बुरा लगा, एक दिन के लिए अनिकेत का आना उनको भारी पड़ गया, 15 दिन के भाग दौड़ से वर्षा पूरी तरह थक चुकी थी इसलिए अनिकेत उसके साथ एक दिन के लिए चला गया। समय के साथ बात आयी और चली गयी परंतु बीच बीच में अनिकेत को माँ के ताने सुनने पड़ते अनिकेत भी अपनी माँ के इस व्यवहार से दुखी हो चुका था क्युंकि वह दोनों के मामले बहुत हस्तक्षेप करने लगी थी। एक दिन फिर वो समय आ गया जब अनिकेत को पापा बनने की खुशखबरी मिल ही गई दोनों बहुत खुश थे अन्य सास की तरह तो नहीं पता पर शांति ख़ुश थी या अंदर से बेचैन ये दोनों खूब समझ रहे थे क्युंकि शांति को लगने लगा कि इन लोग नौकरी में चले जायेंगे उसका बच्चा मुझे सम्भालना पड़ेगा मैं बंधकर रह जाऊंगी मुझे कहीं आने जाने नहीं मिलेगा और अनिकेत वर्षा की तरफ ही ध्यान देने लगेगा ये सोच सोच शांति पागल सी हो गई और मन ही मन षडयंत्र करने लगी, अनिकेत पहले भी माँ की गलत बात का विरोध तो करता परंतु शादी के बाद उसका विरोध करना मानो शांति को काँटे की चुभन लगती थी, वर्षा भी बोल देती क्युंकि उसे घंटों बैठकर पूजा में दिखावा करना पसंद नहीं पूजा के नाम पे ध्यान कहीं और लगा रहे कौन क्या बना रहा कौन क्या खा रहा, इन सब बातों के कारण शांति को लगता कि ये तो पूजा पाठ को नहीं मानती पर ऐसा नहीं था भगवान को मानने का वर्षा का अपना तरीका था ना वो किसी के मामले में हस्तक्षेप करती ना किसी को अपने मामले में करने देती, समय के साथ शांति की जलन भावना चरम सीमा में पहुँच गई एक दिन उसने वर्षा और अनिकेत से बात करने की ठान ही ली और दोनों को बुलाकर अलग हो जाओ इस घर से ये बात कह डाली, दोनों पहले से समझते तो थे परंतु खुद से कभी नहीं कहा, पर इन लोग सोचने मे मजबूर हो गए कि मम्मी अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही हैं उनको जरा भी भान नहीं था कि वो कितनी बड़ी गलती कर रही हैं कहने को तो घर में ऐसा कोई भारी काम भी नहीं था तीन लोग का खाना बस बनाना पड़ता, क्युंकि बाकी काम के लिए अनिकेत ने बाई लगवा रखी थी परंतु शांति को अशांति जो फैलानी थी उसको सब्र कहा था सुना दिया फरमान वर्षा को इस बात का दुख था कि उसकी सास ने इस अवस्था में उसके साथ ऐसा किया जबकि इस समय सबके साथ की जरूरत होती हैं परंतु वर्षा को पता था उसकी सास उसकी प्रेग्नेंसी से खुश नहीं हैं, फिर भी शांति ने जाहिर होने नहीं दी फिर भी वर्षा समझ गयी थी परंतु वर्षा और अनिकेत बहुत खुश थे उन्होंने वैसे भी किसी से कोई उम्मीद नहीं रखी थी लेकिन साथ में रहने से सबकी आदत हो गयी थी इसलिए दोनों को खराब भी लग रहा था, फिर दोनों ने तय किया कि चले जायेंगे, इधर शांति शांति अलग होने बोल तो दी थी पर मन ही मन पछताने लगी उसको चिन्ता होने लगी सच में अनिकेत घर छोड़कर चला गया तो मेरा क्या होगा ये सोचकर वह और सी चिढ़चिढ़ी हो गयी अनिकेत की चुप्पी उसे बहुत बेचैन कर रखा था। वर्षा को भी उस घर में दिक्कत थी क्युंकि शांति का रोकना टोकना उसे पसंद नहीं था इसलिए उसको अलग होने में कुछ खास दिक्कत नहीं थी पर काम के मामले में वर्षा थोड़ी सुस्त थी, और शांति काम में एकदम दक्ष, हालाँकि उसकी सुस्ती अकेले रहने पर ही होती जब सबके साथ होती तो सब काम फटाफट निपटा लेती लेकिन किचन में जाना खाना बनाना उसकी सास को जमता नहीं था पर बेटे और पति को वर्षा के हाथ का खाना ज्यादा पसन्द था तो कुछ बोल नहीं पाती थी। आखिर एक दिन आ ही गया जब वर्षा और अनिकेत उस घर से जाने वाले थे, शांति को भी भनक लग चुकी थी परंतु कभी चाहती कभी नहीं चाहती थी इन लोग अलग हो जाए पर दोनों ने ठान ली थी कि इस बार उनकी धमकी को अनसुना नहीं करेंगे परंतु शांति का नाटक शुरू हो चुका था बात बात पर रोने लगती तबियत खराब होने का नाटक करती कभी कभी बेहोश होने जैसा करती, अनिकेत के खूब आगे पीछे होती, सब समझ रहा था अनिकेत इस बार लेकिन वो फैसला ले चुका था इसलिए उसे इन सब नाटक से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था क्युंकि उसकी माँ ने उसकी गर्भवती पत्नी को घर से चले जाने को कहा जबकि वह अपनी मां को कितना महत्त्व देता था आज अपने बेटे की खुशी बर्दाश्त नहीं कर पा रही कल के दिन मेरे बच्चे को भी कुछ भी बोल देगी इन्ही सब बातों को सोचते कब दिन ढल गया और अगले दिन उन लोग अलग हो गए। किराये के मकान में जाने के बाद वर्षा थोड़ी चिढ़चिढ़ी सी हो गयी थी क्युंकि इस अवस्था में काम का बोझ ज्यादा हो गया था क्युंकि प्रेग्नेंसी के कारण तबियत वैसे भी ठीक नहीं रहती थी, अनिकेत समझ तो रहा था पर वो मदद नहीं कर पाता उसका ध्यान मां के तरफ भी जाता था, समय बीतने लगा वर्षा के डिलेवेरी का समय गया और एक नन्ही सी परी की किलकारी उसके आंगन में गूंजने लगी जो मन के तार को झंकार दे दी दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, अस्पताल से छुट्टी कराने के पहले अनिकेत घर की सफाई करवा का उसे खूब सुंदर सजाता हैं और फिर अस्पताल लेने पहुँच जाता हैं साथ में कुछ परिचय के भी लोग उनकी मदद के लिए आये थे लेकिन अनिकेत ने अपने मां पापा को खबर नहीं की क्युंकि उसे गुस्सा बहुत आ रहा था, अपने घर में वर्षा और नन्ही परी का स्वागत बहुत अच्छे से करता हैं वर्षा भी अनिकेत के इस सरप्रयाइज से चौंक जाती हैं और बहुत खुश भी होती हैं कुछ दिनों बाद वर्षा के सास ससुर को गुड़िया होने की खबर दूसरों से पता चल जाती हैं , ससुर तो मिलने पहुँच जाते हैं पर शांति किस मुँह से जाए उसे तो ये लगा था कि अनिकेत फोन करके बुलाएगा पर ऐसा हुआ नहीं अंदर ही अंदर बेचैनी उसे खोखला बनाने लगी अकेलापन खाने लगा, व्यवहार में चिढ़चिढ़ापन इतना हावी हो गया था कि आस पड़ोस के लोग भी बात करने से कतराते थे, अब उस घर में ढेरों समान के साथ वह अकेले पड़ गयी थी, जिस घर उसे घमण्ड हुआ करता था आज उसे काटने को दौड़ रहा था, जिस घर के काम करने को नौकरानी समझने लगी थी अब पूरी मालकिन बन कर भी खुश नहीं रह पा रही थी,अब उसके जीवन कुछ रह गया था तो वो केवल अशांति।
फैसला
कभी कभी हम जीवन के उस राह मे आकर खुद को खड़ा पाते है, जहां पर अपने ही लिए फैसले मे कुछ समय के लिए पछताना पड़ जाता है। ऐसा ही कुछ वाक्या हुआ शोभा के साथ, जब वह कॉलेज के आखिरी साल की तैयारी मे लगी हुई थी, आँखों मे अनगिनत सपना संजोये हुए, सबके लिए आदर्श बनने की चाह और कुछ अलग कर गुजरने की जिद लिए अपनी मंजिल को अग्रसर हो ही रही थी ,कि अचानक एक दिन उसके पापा को दिल का दौरा पढ़ता है और वे स्वर्ग सिधार लेते हैं, समय के इस चक्र को कौन जानता था तीन बहनों में बड़ी शोभा को एक दिन समय के हाथों अपना सपना चकनाचूर होते देखना पड़ेगा। मां और दो बहनो की जिम्मेदारी अब शोभा के कंधे पर आ गयी, माँ गृहिणी थी, पापा बैंक मैनेजर और तीन बहनों का सुखी संसार था। शोभा अपने सपनों को लेकर काफी खुश थी, परंतु उसके पापा का गुजरना उसके जीवन मे भूचाल ला दिया था, जैसे तैसे खुद को शोभा ने संभाला और जिम्मेदारी उठाने को खुद को तैयार किया और बढ़ गयी उस राह में जहां उबड खाबड रास्तों मे खुद को संभालते हुए, परिवार को संभाल लिया। समय बीतता गया, कब दोनों बहने इंजिनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी कर ली, और उनकी पसन्द के अनुरूप दोनों का ब्याह भी करवा दिया , और उनके जीवन को नयी राह दे दी। परंतु इन सब जिम्मेदारियों ने शोभा के अंदर के स्त्रित्व को लगभग धूमिल कर दिया था, वह भूल चुकी थी वो भी एक औरत हैं, उसकी भी अपनी गृहस्थी होनी चाहिये, उसके अंदर भी भावना हैं। तभी तकदीर ने शोभा के लिए कुछ सोच रखा था, जिस कॉलेज मे वह पढ़ाती थी, उसी कॉलेज मे सुमित नाम का नया प्रोफेसर आया, नैन नक्ष भी ठीक ठाक ही थे, कॉलेज के पहले दिन से ही शोभा जैसे सुमित को भा सी गयी थी, चूँकि शोभा सुमित से पूरे दो साल उम्र मे बड़ी थी फिर भी ना जाने उसका शांत स्वभाव, उसकी शालीनता उसे शोभा की तरफ आकर्षित होने से रोक पाने मे असमर्थ थे। इन सब बातों से शोभा अंजान नहीं थी परंतु शोभा को समझ नहीं आ रहा था 40 वर्ष की आयु में वो अपने जीवन की नई शुरुवात कैसे करे, उम्र में छोटे सुमित के साथ कहीं ये धोखा तो नहीं होगा यही सोचते समय आगे बढ़ने लगा, परंतु समय के साथ साथ सुमीत का झुकाव भी बढ़ने लगा, शोभा को ये बात खटकने लगी, फिर भी सुमीत ने हार नहीं मानी। आखिरकार एक दिन सुमीत शोभा की माँ से मिलने उसके घर पहुँच ही जाता हैं और अपनी मन की बात कह डालता है, कि शोभा ही मेरी जीवनसंगिनी बनेगी माँ जी यदि आप चाहेंगी तो सब हो जायेगा,शोभा का हाथ मेरे हाथ मे दे दीजिये मां जी, इतने आग्रह और शालीनता से बात रखी सुमीत ने की वो मना नहीं कर पायी, शोभा से बात करने का दिलासा देकर उसे रवाना करती हैं । जिस प्रकार सुमीत भी एक लड़की से धोखा खाने के बाद अकेले जीवन जीने का फैसला कर चुका था, परंतु शोभा को देखकर उसे उसके साथ जीने की एक नई आशा नजर आयी। आखिरकार कुछ समय के इंतजार के बाद सुमीत को वो खुशी मिल ही गयी जिसका उसे इंतजार था, शोभा उसकी जीवनसंगिनी बननें को राजी हो गयी। आज पूरी जिम्मेदारी निभाने के बाद उसने पहली बार अपने लिए जिम्मेदारी निभाई शोभा और सुमीत का घर बस गया , माँ भी शोभा के साथ ही रहने लगी थी। सब कुछ ठीक चल ही रहा था कि एकाएक एक दिन शोभा की छोटी बहन बिंदु अपने ससुराल वालो से झगड़ कर शोभा के यहाँ आ पहुँची और बिलख बिलख कर रोने लगी, कि ससुराल बहुत ताना मारते हैं और पति दिनभर शराब मे मस्त रहता हैं मेरी वहां किसी को कोई परवाह नही, पति भी मारपीट करने लगा हैं, ऐसा कहकर फूट फूट रोने लगी, मैं उस घर में नहीं जाऊंगी। ये सब शोभा की मां सब सुन रही थी, परंतु वह बहुत चिंतित होने लगी कि एक बेटी का घर टूटने की नौबत के साथ साथ, शोभा के नये बसे घर में कोई दिक्कत ना आ जाये, ये सोच वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगी। फिर एक दिन वही हुआ जिसका डर था जीवन के खालीपन बिंदु को काटने लगा वह धीरे धीरे सुमीत की ओर आकर्षित होने लगी। जब जब वह सुमीत और शोभा को देखती उसे ईर्ष्या होने लगी, यह ईर्ष्या उसे सुमीत की ओर और धकलने लगी। यह झुकाव उसकी माँ के नजर से छुप ना सका, एक दिन उसने बिंदु से इस विषय मे बात करने की ठानी और अप्रत्यक्ष रूप से उसे अपने ससुराल जाने की बात कह डाली, ये सुनकर बिंदु दहाड़ मारकर रोने लगी, कि मेरा यहां कोई नही क्या मैं यहाँ रह नहीं सकती, पापा होते तो ये दिन देखना ना पड़ता, ऐसा कहकर पूरा घर सिर पर उठा लिया। तभी सुमीत और शोभा घर पहुँचते हैं, और दोनों इस माजरे से अंजान, फिर भी बात संभालते हुए शोभा बिन्दु को ढाढस बंधाया, और कहा कि ये तुम्हारा भी घर हैं यहाँ जब चाहे आ सकती हो और जब चाहे रुक सकती हो। कुछ दिन तो सब ठीक था परंतु बिंदु का झुकाव सुमीत की ओर बढ़ ही रहा था, सुमीत भी कब तक अंजान रह पाता, कभी कभी वो भी बिंदु को देखते ही रह जाता फिर नजरे फेर लेता ! इधर शोभा की माँ को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे, क्योंकि बिंदु की नासमझी कहीं शोभा का घर ना उजाड़ दे, क्योंकि सारे सपनों की तिलांजलि देने के बाद उसके जीवन में कुछ सुख के क्षण आये थे, वह उसे ऐसे बिखरने नहीं देना चाहती थी। परंतु कुछ चीजें अपने बस में नहीं होती, सुमीत का भी पैर फिसलने लगा, धीरे धीरे बिन्दु की ओर आकर्षित होने लगा, और इस बात की भनक शोभा को भी लग गई। कुछ पल के लिए उसके सपनों का संसार धराशायी होते नजर आता हैं, वह बिस्तर पर पड़े पड़े बेसुध सी , बिखरे बाल, अविरल आँसू के धारा जो रोके रुक नहीं रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो एक एक उसके जीवन का पन्ना बिखर रहा हो, और उस पर हँस रहा हो। आज सुमीत के साथ घर बसाने का फैसला मानो उस पर उलट कर उसका मजाक बना रहा हो, क्यूँ किया उसने शादी क्यूँ हामी भरी थी उसने! क्यों उसके आँखों ने अधूरे सपने देखें जो कभी पूरे होने ही न थे। उसने बिना किसी से कुछ कहे शहर छोड़ने का फैसला ले लिया था, उधर सुमीत भी अपने आपमें पछता रहा था, कि आखिर उसने इतनी बड़ी गलती कैसे की, कैसे उसने शोभा की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया, क्यों वह बिन्दु की तरफ आकर्षित हो गया था, सुमीत भी अपनी गलती सुधारने का फैसला करता हैं, और इधर शोभा भी नये फैसले के साथ खुद को तैयार कर सुमीत से तलाक लेने का सोचकर शहर से बाहर जाने का मन बना लेती हैं। इस दौरान शोभा की माँ अपनी दूसरी नंबर की बेटी हेमा को सब वारदात बता कर उसे बुला लेती हैं, हेमा बिन्दु के ससुराल वालों से बात कर बिन्दु को ससुराल वापिस ले जाने की बात कहकर लेने आने को राजी कर लेती हैं। बिन्दु को भी अपनी गलती का अहसास होता है और ससुराल लौट जाती हैं, इधर सुमीत शोभा से माफी दी हैं और भविष्य में ऐसी गलती ना दोहराने का वादा करता हैं , और साथ ही हमेशा शोभा की जिंदगी में बने रहने का वचन भी देता हैं। इधर माँ और हेमा शोभा को खूब समझाते हैं कि एक मौका सबको मिलना चाहिए, एक बुरा स्वप्न समझ कर भूल जाने की बात कहते हैं, कुछ पल सोचने के बाद शोभा फिर से सुमीत के साथ हँसी खुशी जीने को राजी हो जाती हैं अपने सपनों के साथ।